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४ जून, १९६९
पिछली बार तुम्हारे चले जानेके बाद मै इस विषयमें काफी कुछ देखती रही, सारे दिन. इस अद्भुत समाधानकी बातमें ( ज्योतिर्मय शरीरकी बातमें) कुछ अर्थ है । जब तुमने यह बात कही तो अचानक किसी चीज- ने मूर्त्त रूप ले लिया । ' लेकिन उसमें कोई वैयक्तिक भाव न था.. । शरीरके अंदर वह ( ज्योतिर्मय शरीर) बननेकी कोई, कोई महत्वाकांक्षा, कामना या अभीप्सा नहीं है । केवल ' 'इसके' ' हों सकनेकी संभावनाके कारण एक आनंद था । अगर यह किया जाय, तो कौन, कहां और कैसेका कोई मूल्य नहीं : अगर यह किया जाय तो । मैंने उसे बड़े ध्यानसे देखा; निमिष मात्रके लिये भी उसमें यह विचार न आया. ' वास्तवमें माताजी बहुत देरतक ''टकटकी लगाये देखती रहीं' ' । उस समयका भाव ऐसा था जिसे देखनेपर हीं माना जा सकता है । शिष्यको ऐसा लगा मानों ज्योतिर्मय शक्तिका प्रपात धरतीपर झर रहा हों ।
वह यही शरीर होना चाहिये । ( माताजी अपनी त्वचाको उंगलियोंसे पकड़ती है) समझे? बस, इतना ही था. बस यह हो जाय, यह अवतार, यह अभिव्यक्ति - वह इस व्यक्तिको ले या उसको, एक जगहको लें या दूसरीको, नहीं, इस प्रकारकी कोई बात ही न थी. चीज अपने-आपमें एक अद्भुत समाधान थी । बस, इतना ही ।
तो चेतनाने अवलोकन करना शुरू किया : अगर इस शरीरमें कोई भी ऐसी चीज नहीं है जो वह बननेकी ' 'अभीप्सा'' करती हो. इससे प्रमाणित होगा कि यह उसका काम नहीं है । तब वह अद्भुत 'मुस्कान' आयी (पता नहीं कैसे अभिव्यक्त किया जाय), वह वहां थी, वह गुजरी और उसने कहा.. ( उसका बिलकुल बचकाने रूपमें अनुवाद किया जा सकता है) : ''यह तुम्हारा धंधा नहीं है! '' बस । यहीं अंत हो गया । उसके बाद मै उसमें व्यस्त न रही । ''तुम्हारा धंधा नहीं है'' का मतलब यह कि इससे तुम्हारा कोई मतलब नहीं कि वह यह है या वह, या फिर वह, इससे तुम्हें सरोकार नहीं । बस इतना ही ।
लेकिन अब जो उसका अपना धंधा बन गया है -- इतने, इतने अधिक तीव्र रूपमें कि उसका वर्णन नहीं किया जा सकता -- वह है ''तू, तू, तू, तू ।.. .'' कोई शब्द उसका अनुवाद नहीं कर सकता : एक शब्दमें कहे तो भगवान् । वही सब कुछ है, वही सबके लिये है -- खानेके लिये : भगवान्; सोनेके लिये : भगवान्; कष्ट खेलनेके लिये. भगवान्.. और इसी तरह (माताजी दोनों हाथ ऊपरकी ओर उठाती हैं) । एक प्रकारकी स्थिरता और निश्चलताके साथ ।
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